आज मेरे कुछ ख्वाब टूट गए
क्यूँ मैं जीता था इस उम्मीद में
कि मेरे ख्वाब में परियां होंगी
जबकि मेरे उम्मीद की कोई सतह ही नहीं
ख्वाब की परियों के पर नहीं होते
बिना किसी अपेक्षा के प्यार नहीं होता
होता नहीं बिना जीवनचक्र का कोई रिश्ता
सहारा कोई भी जीवन भर का नहीं होता
अब जी नहीं करता मेरा सोने को
वो ख्वाब बार बार वापस आते है
और सिर्फ नींद में ही नहीं
वो अब जागते हुए भी सताते हैं
अब मैं किसी ख्वाब में जीना नहीं चाहता
मरना भी नहीं मुझे किसी ख्वाब में
ना ही इंतजार करता हूँ उस पल का मैं
क्यूंकि हर पल उस इंतजार का बहुत ही दुखदाई है
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Thursday, March 19, 2009
Thursday, January 29, 2009
तुम और हम
तुम क्यूँ नहीं समझती की हमारे सपने अलग हैं
तुम क्यूँ नहीं समझती की हमारी पसंद भी एक नहीं
चिडियों की चहचहाह्ट मुझे भाता नहीं हैं
पहाङो की खुशबू भी कभी मैंने समझा नहीं
हम इतने अलग होकर भी क्यूँ चाहते हैं पास आना
क्यूँ लगता हैं की तुम्हारे बीना जी नहीं पाउँगा
जबकि हम दोनों को मालूम हैं यह कड़वी सच्चाई
की हम साथ रहकर भी कभी खुश नहीं रह पाएंगे
शायद ये मान लेना हीं हम दोनों के लिए अच्छा हैं
की हर कोशिश के बाद भी यह सच्चाई बदल नहीं सकती
तुम मेरे कितना कहने पर भी मीठा नहीं खाओगी
और पिंक कलर का शर्ट मुझे कभी पसंद नहीं आएगा
तुम क्यूँ नहीं समझती की हमारी पसंद भी एक नहीं
चिडियों की चहचहाह्ट मुझे भाता नहीं हैं
पहाङो की खुशबू भी कभी मैंने समझा नहीं
हम इतने अलग होकर भी क्यूँ चाहते हैं पास आना
क्यूँ लगता हैं की तुम्हारे बीना जी नहीं पाउँगा
जबकि हम दोनों को मालूम हैं यह कड़वी सच्चाई
की हम साथ रहकर भी कभी खुश नहीं रह पाएंगे
शायद ये मान लेना हीं हम दोनों के लिए अच्छा हैं
की हर कोशिश के बाद भी यह सच्चाई बदल नहीं सकती
तुम मेरे कितना कहने पर भी मीठा नहीं खाओगी
और पिंक कलर का शर्ट मुझे कभी पसंद नहीं आएगा
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