Friday, October 10, 2014

Thank You Flipkart!

Dear Flipkart,

Thanks for the Big Billion Day! You might be thinking that here comes another customer with a billion complaints. But why should I complain and what should I complain about? I do not have any reasons nor I think I have any right to complain. I still remember the shopping experiences I had before Flipkart was born and feel the difference after Flipkart came into existence. I have always hated long queue, scarcity of space, scarcity of items and rude behaviour of shopkeepers. Flipkart has changed the shopping experience for Indian customers. People are venting out their anger but I am 100% sure they will still choose to shop at Flipkart because at the end of the day Flipkart remains the one to be relied upon. The prices are better than any shop in the city. The quality of the product and customer service is no match to any retailer. I completely believe that what happened on the day was unexpected and it was purely a technical issue. What surprised me that the Government is seeking a probe into this issue. I have few questions that why they never probe the issues when we are not able to book a tatkal railway tickets, whereas the agents get it easily. Who and what make it possible to steal the hundreds of tickets in 2 minutes of opening the counter; whereas the agents can get you confirmed ticket even before the train departure. Why there is no criminal offence for every time it rains in Bangalore, a child dies in pothole? Why aren't the authorities responsible for the death is treated as murderers? I think the Government has a lot burning issue to close. I thank you Sachin and Binny for making my life easier by bringing Flipkart into existence. The only thing I want you to do now is to run the campaign once again and make the target as The Thrilling Trillion Sale. This time making it even better and more successful.

A Flipkart Customer

Wednesday, May 22, 2013

Mere Baad

mitti ka main, mitti me mil jaunga ek din
lekin usse pehle bahut kuch hai karna mujhe
kitne raaste adhure hai, kitni manzilein abhi door hai
kitno ko rasta dikhana hai
kitno ko manzil tak pahuchana hai
kitne raston ka karna hai abhi nirman 
aur kitni manzilon ko bhi lana hai pass
kaun karega ye sab mere baad?

meri priyatama tum khus rehna
mere sath ya fir mere baad
na karna koi fikar kyunki
tumhari khusi ka rakhta hoon main hamesha dhyan
jane se pehle kar dunga main sara intezam
adhure raste me nahin chodunga tumhe
jab jaunga chodker ye sarir
tumhe haath pakadkar chalne wala bhi hoga
manzil tak pahuchne ka sahara bhi hoga
jis din tum khus rahogi mere baad
itni khus ki na aaye meri yaad
us din mujhe mukti bhi mil jayegi
mitti ka main, mitti me mil jaunga
aur us din main amar bhi ban jaunga

Thursday, June 28, 2012

पहले का जमाना ही ठीक था
जब ना helicopter ना aeroplane था
परदेश नहीं जाते थे तुम
दूर नहीं कभी होते तुम

कुछ तो मजबूरी रही होगी तुम्हारी
कि तुम चले गए हो सात समुंदर पार
जहाँ न नानी का लाड है
ना हीं मम्मी की खिटखिट का संसार

होता मैं अगर करीब तुम्हारे
पकड़ लेता तुम्हारे हाथ से छुटते हुए cup को
रोक लेता हर बुरी नज़र जो उठती तुम्हारी ओर
और बुला लेता वापस तुम्हे अपने पास

अब मुझे चाहत नहीं कुछ और इस जीवन में
डरता हूँ बीत न जाए ये ज़िन्दगी इन्तेज़ार में
तुम कभी भी मेरी उम्मीद मत छोड़ना
और मैं कभी अपनी कोशिश नहीं छोडूंगा

Monday, April 11, 2011

बचपन की खुशियाँ

बचपन की कुछ यादें ऐसी ख़ुशी देती है जिनकी कोई कीमत नहीं होती है। स्कूल के लंच ब्रेक में इमली के पेड़ पर पत्थर मार कर कच्ची इमली तोड़ने में जो मज़ा था वो आज home delivered pizza में नहीं मिलता है। हमारे स्कूल के बाहर एक चाट वाले का ठेला था। वह चाट वाला 50 पैसे में half plate और 1 rupee में full plate समोसा चाट बेचता था। उसका मार्केटिंग स्टाइल भी बिलकुल अनोखा था। भोजपुरी और इंग्लिश मिलाकर सब लोगों को आकर्षित कर लेता था। मैं अपने ऑटो रिक्शा के किराये में से 50 पैसे बचाकर half plate चाट खाता था और पैदल घर वापस आ जाता था। अभी भी उसके बनाये हुए चाट का स्वाद जीभ से गया नहीं है।

एक तुरई का लत्तर और एक लौकी का, जो छत तक पहुँच चूका था। तुरई का पेड़ मेरा और लौकी का मेरे बड़े भाई का। खाने में मुझे दोनों नहीं पसंद थे। लेकिन भाई से झगड़ा होता तो मैं उसके पेड़ से सारे लौकी तोड़ देता। एक बार उधार में मैंने अपने भाई को 2 रुपये दिए थे। एक diary में मैंने ये लिखवा लिया था signature के साथ की एक हफ्ते के बाद 5 रुपये वो मुझे वापस करेगा। शायद 10 साल की उम्र होगी मेरी उस समय। अभी सोचता हूँ तो थोड़ी हंसी आती है अपनी बेवकूफी पर और थोड़ी अपनी गलती पर अफ़सोस भी होता है।

मुझे बचपन में अपने नानाजी के पास जाना बहुत पसंद था। जब भी मैं अपने गाँव नाना-नानी के पास जाता तो उनके खेत में हेलीकाप्टर तितली के पीछे भागता और उसे पकड़ लेता था। फिर उसके पूंछ में धागा बांध कर उसे उड़ाने में बड़ा मज़ा आता था। बहुत डांटा था माँ ने ये देखकर और फिर मुझे भी अफ़सोस हुआ उस बेचारे तितली पर। नाना-नानी के पास जाने में अच्छा लगने का एक कारण ये भी था की जहाँ बाकी रिश्तेदार विदाई के समय बच्चों को 10 -10 रुपये का नोट पकड़ा देते थे वहीँ मेरे नानाजी 100 रुपये का हरा-हरा कड़क नोट देते थे। वहां से आने के बाद मैं अमीर हो जाता था और अगले 6 महीने का जेब खर्च निकल जाता था। छोटी-छोटी सी बातें इतनी ख़ुशी देती थी जितनी आज उस से 100 गुना ज्यादा काम होने पर भी नहीं होता है। कुछ भी अच्छा हो जाये फिर भी लगता है की अभी तो कुछ भी नहीं हुआ जो हमे ख़ुशी दे सकता है। शायद कुछ बड़ा पाने की ख़ुशी से बड़ी अब छोटी- छोटी सी चीजों के न होने का दुःख है। हम फिर से उस बचपन को तो नहीं ला सकते हैं लेकिन एक कोशिश तो जरूर कर सकते हैं की हर छोटी-छोटी चीजें हमें फिर से वहीँ बड़ी ख़ुशी दे सके। हर पल हम उसी उमंग से जिये और जो नहीं है उसका गम भूल जाये। क्या ऐसा हो सकता है फिर से?

Tuesday, January 11, 2011

Escape

To see you crying my heart sinks
I wanna escape this feeling
the feeling of helplessness
I wish i had the answers
of Why it happens in our life
the happier you want someone to be
the chances are, you see always getting hurt
every tear I try to stop
flows with hundred more drops

Let's fight with this feeling together
to bring back the happiness forever
it might escape again from us
but we wont fail and stop trying
there will be no more crying
the story will have a happy ending
and the queen will live happily here after

Monday, January 25, 2010

कल्पना

कुछ अलग सी थी वो। सपने देखना उसे बहुत पसंद था। हर पल एक नयी दुनिया का निर्माण होता था उसके अंतर्मन में। सपने भी इतने विस्तार से देखती की हकीकत भी झूठी लगने लगती थी। सबको सुनाती थी अपनी कहानी। हँसती-खिलखिलाती, कभी सपनो से बातें करती तो कभी अपनों से। केवल नाम से ही नहीं बल्कि वास्तव में थी वो कल्पना। खेलती कूदती, मस्ती में हर पल बिता देती। बचपन कब गया और कब जवानी आ गयी ये बात कल्पना कभी समझ नहीं पाई। लोगों ने बताया, समझाया, उसे महसूस करवाया, फिर उसे समझ में आया की कुछ तो बदल गया है। वो अब मुहल्ले के लडको के साथ क्रिकेट नहीं खेल सकती थी। माँ अब कित कित खेलने से भी मना करती थी। वो बात कभी नहीं भूलेगी, जब बाग़ में आम तोड़ने के लिए शम्भू ने उसे गोद में उठाया था और माँ ने उसे दो थप्पड़ गाल पे लगा दिए। धीरे धीरे उसका अकेले घर से बाहर जाना भी बंद हो गया। हर पल वो कोसती की क्यूँ बड़ी हो गयी। अब वो सिर्फ खिड़की पे खड़ी रहकर सबको खेलती हुए देखती थी। माँ को ये भी पसंद नहीं आता था। अक्सर माँ बोलती की अच्छे घर की लड़कियां ऐसा नहीं करती। कल्पना को अभी तक ये समझ में नहीं आया कि क्यूँ नहीं करती।

कल्पना को पढाई करना बहुत अच्छा लगता था। जब तक स्कूल गयी, हमेशा कक्षा में प्रथम आती रही। माँ की इच्छा नहीं थी की कल्पना आगे पढ़े। मास्टर जी को जब ये बात पता चली तो वो मिलने के लिए कल्पना के घर आये। उन्होंने कल्पना की माँ को समझाया की आजकल के लड़के भी पढ़े लिखे लड़की से ही शादी करते हैं। लड़की का स्नातक होना बहुत जरूरी है। आजकल के लड़के तो काम-काज वाली लड़की ज्यादा पसंद करते हैं। अगर वो चाहती है की कल्पना की शादी अच्छे घर में हो तो उसे पढ़ाना बहुत ही जरूरी हैं। अब अच्छे घर में शादी हो जाये यही तो एक तमन्ना थी कल्पना की माँ की। वो मास्टर जी को ना नहीं कर पाई। कल्पना ने कॉलेज में दाखिला ले लिया। कल्पना आज भी वही थी हर पल कल्पना की ऊँची उड़ान भरती। उसने script writing का कोर्स किया। वो अपनी कल्पना को नाम देना चाहती थी, आकार देना चाहती थी। वो पूरी दुनिया को सुनाना चाहती थी अपने दिल में छुपी हुई ऐसे अनगिनत कहानियां। समय बीतता गया और कल्पना पढाई में डूब गयी। एक दिन उसके हकीकत की दुनिया में सपनो की दुनिया का राजकुमार आया। वो नो घोड़े पे आया था ना ही उसकी पोशाक सफ़ेद थी। लेकिन फिर भी वो कई सपने ले कर आया था। कल्पना ने ऊँची उड़ान भरी। उसने अपने राजकुमार को बहुत प्यार किया। लेकिन हकीकत में सपने ज्यादा दिन तक पलते नहीं हैं। एक दिन अचानक राजकुमार चला गया। कल्पना ने बहुत चोट खायी अपनी इस ऊँची उड़ान में। राजकुमार ने जाते जाते बहुत सारे जख्म दिए। कल्पना गिरती संभलती फिर से हिम्मत की अपने पुरानी दुनिया में वापस आने की। एक दिन कल्पना की पढाई पूरी हुई। वो घर वापस आ गयी। माँ ने उसकी शादी के बात शुरू कर दी थी। कल्पना मांगलिक थी। बहुत सारे अच्छे रिश्ते आते लेकिन कुंडली ना मिलने के कारण बात आगे नहीं बढ़ पाती। जब भी कोई आता कल्पना फिर से सपने देखने लगती। वो अपने सपनो के घर को सजाती थी। उस घर के हर चीज़ में प्यार भरती थी। लेकिन हर बार भूकंप आता और उसके सपनो को मिटा देता था।

कल्पना को आज भी समझ में नहीं आता की क्यूँ उसके सपने बिखरते हैं। क्यूँ उसके सपने बिकते नहीं इस बाज़ार में। कल्पना टूट रही है। उसकी माँ उसे नौकरी की इज़ाज़त नहीं देती जब तक उसकी शादी पक्की ना हो जाये। कल्पना अब थक चुकी है। अब वो उड़ने से डरती है। उसके सपने भी अब उसके नहीं हैं। फिर भी उसे यकीन है की एक दिन उसके सपनो का खरीदार आएगा। वो राजकुमार ना सही, लेकिन उसे अपने साथ ले जायेगा एक नयी दुनिया में। फिर से घर बसाएगी हमारी कल्पना।

यह तो एक अधूरी कहानी है। लेकिन जब हम अपने आस पास देखेंगे तो ऐसी बहुत सारी कल्पनाये दम तोडती हुई नज़र आएगी। आइये कोशिश करते हैं की हमारे सामने कोई कल्पना अपनी उड़ान न छोड़े। एक ऐसा माहौल बनाये जिसमे वो निर्भय होकर हंसे, खिलखिलाए और जिंदगी के हर पल का मज़ा ले। हर कल्पना में इतनी क़ाबलियत है की वो अपने देखे हर सपने को साकार कर सके। जरूरत बस इतनी है की हम उनकी काबलियत को पहचाने और उनको एक मौका दे सपने बुनने का। Happy Girl Child Week!

Friday, October 30, 2009

सोफिया

रंग दिखाए तुमने मुझे ज़िन्दगी के ऐसे
काली रात भी अब रंगीन हो गयी है
सपने दिखाए तुमने मुझे सुनहरे
की मेरी ऑंखें भी मदहीन हो गयी है
क्या सच है और क्या झूठ यह मालूम नहीं
लेकिन हर बात तुम्हारी अच्छी लगने लगी है
हंसी तुम्हारी अनमोल है इतनी
की हर चीज़ अब हसीन हो गयी है
दिल कहता है मत सोचो इतनी गहराई में
जी लो हर पल को जो मिला है तुम्हे
आज की ज़िन्दगी ही सच्चाई है
ये वक़्त जो मिला है सिर्फ तुम्हारा है
इन्तज़ार है मुझे तुम्हारे आने का
हर पल तुम्हारे साथ बिताने का
तुम ख्वाब नहीं अब हकीक़त बन गयी हो
हर लम्हे में जीने की जरूरत बन गयी हो