बचपन की कुछ यादें ऐसी ख़ुशी देती है जिनकी कोई कीमत नहीं होती है। स्कूल के लंच ब्रेक में इमली के पेड़ पर पत्थर मार कर कच्ची इमली तोड़ने में जो मज़ा था वो आज home delivered pizza में नहीं मिलता है। हमारे स्कूल के बाहर एक चाट वाले का ठेला था। वह चाट वाला 50 पैसे में half plate और 1 rupee में full plate समोसा चाट बेचता था। उसका मार्केटिंग स्टाइल भी बिलकुल अनोखा था। भोजपुरी और इंग्लिश मिलाकर सब लोगों को आकर्षित कर लेता था। मैं अपने ऑटो रिक्शा के किराये में से 50 पैसे बचाकर half plate चाट खाता था और पैदल घर वापस आ जाता था। अभी भी उसके बनाये हुए चाट का स्वाद जीभ से गया नहीं है।
एक तुरई का लत्तर और एक लौकी का, जो छत तक पहुँच चूका था। तुरई का पेड़ मेरा और लौकी का मेरे बड़े भाई का। खाने में मुझे दोनों नहीं पसंद थे। लेकिन भाई से झगड़ा होता तो मैं उसके पेड़ से सारे लौकी तोड़ देता। एक बार उधार में मैंने अपने भाई को 2 रुपये दिए थे। एक diary में मैंने ये लिखवा लिया था signature के साथ की एक हफ्ते के बाद 5 रुपये वो मुझे वापस करेगा। शायद 10 साल की उम्र होगी मेरी उस समय। अभी सोचता हूँ तो थोड़ी हंसी आती है अपनी बेवकूफी पर और थोड़ी अपनी गलती पर अफ़सोस भी होता है।
मुझे बचपन में अपने नानाजी के पास जाना बहुत पसंद था। जब भी मैं अपने गाँव नाना-नानी के पास जाता तो उनके खेत में हेलीकाप्टर तितली के पीछे भागता और उसे पकड़ लेता था। फिर उसके पूंछ में धागा बांध कर उसे उड़ाने में बड़ा मज़ा आता था। बहुत डांटा था माँ ने ये देखकर और फिर मुझे भी अफ़सोस हुआ उस बेचारे तितली पर। नाना-नानी के पास जाने में अच्छा लगने का एक कारण ये भी था की जहाँ बाकी रिश्तेदार विदाई के समय बच्चों को 10 -10 रुपये का नोट पकड़ा देते थे वहीँ मेरे नानाजी 100 रुपये का हरा-हरा कड़क नोट देते थे। वहां से आने के बाद मैं अमीर हो जाता था और अगले 6 महीने का जेब खर्च निकल जाता था। छोटी-छोटी सी बातें इतनी ख़ुशी देती थी जितनी आज उस से 100 गुना ज्यादा काम होने पर भी नहीं होता है। कुछ भी अच्छा हो जाये फिर भी लगता है की अभी तो कुछ भी नहीं हुआ जो हमे ख़ुशी दे सकता है। शायद कुछ बड़ा पाने की ख़ुशी से बड़ी अब छोटी- छोटी सी चीजों के न होने का दुःख है। हम फिर से उस बचपन को तो नहीं ला सकते हैं लेकिन एक कोशिश तो जरूर कर सकते हैं की हर छोटी-छोटी चीजें हमें फिर से वहीँ बड़ी ख़ुशी दे सके। हर पल हम उसी उमंग से जिये और जो नहीं है उसका गम भूल जाये। क्या ऐसा हो सकता है फिर से?
Monday, April 11, 2011
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