Monday, January 25, 2010

कल्पना

कुछ अलग सी थी वो। सपने देखना उसे बहुत पसंद था। हर पल एक नयी दुनिया का निर्माण होता था उसके अंतर्मन में। सपने भी इतने विस्तार से देखती की हकीकत भी झूठी लगने लगती थी। सबको सुनाती थी अपनी कहानी। हँसती-खिलखिलाती, कभी सपनो से बातें करती तो कभी अपनों से। केवल नाम से ही नहीं बल्कि वास्तव में थी वो कल्पना। खेलती कूदती, मस्ती में हर पल बिता देती। बचपन कब गया और कब जवानी आ गयी ये बात कल्पना कभी समझ नहीं पाई। लोगों ने बताया, समझाया, उसे महसूस करवाया, फिर उसे समझ में आया की कुछ तो बदल गया है। वो अब मुहल्ले के लडको के साथ क्रिकेट नहीं खेल सकती थी। माँ अब कित कित खेलने से भी मना करती थी। वो बात कभी नहीं भूलेगी, जब बाग़ में आम तोड़ने के लिए शम्भू ने उसे गोद में उठाया था और माँ ने उसे दो थप्पड़ गाल पे लगा दिए। धीरे धीरे उसका अकेले घर से बाहर जाना भी बंद हो गया। हर पल वो कोसती की क्यूँ बड़ी हो गयी। अब वो सिर्फ खिड़की पे खड़ी रहकर सबको खेलती हुए देखती थी। माँ को ये भी पसंद नहीं आता था। अक्सर माँ बोलती की अच्छे घर की लड़कियां ऐसा नहीं करती। कल्पना को अभी तक ये समझ में नहीं आया कि क्यूँ नहीं करती।

कल्पना को पढाई करना बहुत अच्छा लगता था। जब तक स्कूल गयी, हमेशा कक्षा में प्रथम आती रही। माँ की इच्छा नहीं थी की कल्पना आगे पढ़े। मास्टर जी को जब ये बात पता चली तो वो मिलने के लिए कल्पना के घर आये। उन्होंने कल्पना की माँ को समझाया की आजकल के लड़के भी पढ़े लिखे लड़की से ही शादी करते हैं। लड़की का स्नातक होना बहुत जरूरी है। आजकल के लड़के तो काम-काज वाली लड़की ज्यादा पसंद करते हैं। अगर वो चाहती है की कल्पना की शादी अच्छे घर में हो तो उसे पढ़ाना बहुत ही जरूरी हैं। अब अच्छे घर में शादी हो जाये यही तो एक तमन्ना थी कल्पना की माँ की। वो मास्टर जी को ना नहीं कर पाई। कल्पना ने कॉलेज में दाखिला ले लिया। कल्पना आज भी वही थी हर पल कल्पना की ऊँची उड़ान भरती। उसने script writing का कोर्स किया। वो अपनी कल्पना को नाम देना चाहती थी, आकार देना चाहती थी। वो पूरी दुनिया को सुनाना चाहती थी अपने दिल में छुपी हुई ऐसे अनगिनत कहानियां। समय बीतता गया और कल्पना पढाई में डूब गयी। एक दिन उसके हकीकत की दुनिया में सपनो की दुनिया का राजकुमार आया। वो नो घोड़े पे आया था ना ही उसकी पोशाक सफ़ेद थी। लेकिन फिर भी वो कई सपने ले कर आया था। कल्पना ने ऊँची उड़ान भरी। उसने अपने राजकुमार को बहुत प्यार किया। लेकिन हकीकत में सपने ज्यादा दिन तक पलते नहीं हैं। एक दिन अचानक राजकुमार चला गया। कल्पना ने बहुत चोट खायी अपनी इस ऊँची उड़ान में। राजकुमार ने जाते जाते बहुत सारे जख्म दिए। कल्पना गिरती संभलती फिर से हिम्मत की अपने पुरानी दुनिया में वापस आने की। एक दिन कल्पना की पढाई पूरी हुई। वो घर वापस आ गयी। माँ ने उसकी शादी के बात शुरू कर दी थी। कल्पना मांगलिक थी। बहुत सारे अच्छे रिश्ते आते लेकिन कुंडली ना मिलने के कारण बात आगे नहीं बढ़ पाती। जब भी कोई आता कल्पना फिर से सपने देखने लगती। वो अपने सपनो के घर को सजाती थी। उस घर के हर चीज़ में प्यार भरती थी। लेकिन हर बार भूकंप आता और उसके सपनो को मिटा देता था।

कल्पना को आज भी समझ में नहीं आता की क्यूँ उसके सपने बिखरते हैं। क्यूँ उसके सपने बिकते नहीं इस बाज़ार में। कल्पना टूट रही है। उसकी माँ उसे नौकरी की इज़ाज़त नहीं देती जब तक उसकी शादी पक्की ना हो जाये। कल्पना अब थक चुकी है। अब वो उड़ने से डरती है। उसके सपने भी अब उसके नहीं हैं। फिर भी उसे यकीन है की एक दिन उसके सपनो का खरीदार आएगा। वो राजकुमार ना सही, लेकिन उसे अपने साथ ले जायेगा एक नयी दुनिया में। फिर से घर बसाएगी हमारी कल्पना।

यह तो एक अधूरी कहानी है। लेकिन जब हम अपने आस पास देखेंगे तो ऐसी बहुत सारी कल्पनाये दम तोडती हुई नज़र आएगी। आइये कोशिश करते हैं की हमारे सामने कोई कल्पना अपनी उड़ान न छोड़े। एक ऐसा माहौल बनाये जिसमे वो निर्भय होकर हंसे, खिलखिलाए और जिंदगी के हर पल का मज़ा ले। हर कल्पना में इतनी क़ाबलियत है की वो अपने देखे हर सपने को साकार कर सके। जरूरत बस इतनी है की हम उनकी काबलियत को पहचाने और उनको एक मौका दे सपने बुनने का। Happy Girl Child Week!